स्वामी विवेकानंद की लिखि पुस्तक कर्म-योग की समीक्षा

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स्वामी विवेकानंद की लिखि पुस्तक कर्म-योग की समीक्षा


स्वामी विवेकानंद की लिखि पुस्तक कर्म-योग

 कर्म योग नाम की एक एसी पुस्तक है। हमरा कर्म और कार्य कैसा होना चाहिए। और आप जानते है। इस पुस्तक को लेकर है श्री स्वामी विवेकानंद जी क्या इनके दुबारा लिखी इस पुस्तक के बारे मे जानना चाहते है।
हम इस लेख मे इस किताब ( कर्म-योग ) बारे मे सब कुछ बताने बाले है जैसे की हमे यह कर्म-योग को क्यु पढ़ना चाहिए हमे क्या लाभ प्राप्त होगा और इस कर्म-योग पुस्तक की शब्द की शब्द हमारे जीवन को कैसे बदल सकती है। 

अगर आप यह समझ ते है यह पुस्तक कर्म-योग सच मे आप की जीवन को कैसे बदल सकती है। आप इन के बारे मै जान लीजिए गा इन की जीवन को कैसे बदलने मे योगदान दिया है श्री स्वामी विवेकानंद जी के दुवरा लिखी पुस्तक ने आब उनका नाम जान लिजिये : 

इस पुस्तक ( कर्म-योग ) मे कुल आठ (8) आध्याय है और ये सभी आध्याय बहुत ही महत्वपूर्ण है आगर आप इस किताब से कुछ सीखना चाहते है तो आप को काफी ध्यान केंद्रित कर के समझना होगा।

इस पुस्तक की आध्याय का नाम 

1. कर्म का चरित्र पर प्रभाव 
2. मनुष्य केवल महान है
3. कर्म का रहस्य : निस्वार्थ परोपकार
4. कर्तव्य 
5. हम आपना उपकार कर ते है ना कि संसार का
6. पूर्ण आत्मत्याग ही अनासक्ति है।
7. मेछ
8. कर्मयोग का आदर्श

इस पुस्तक (कर्म-योग) कि कुछ महत्वपूर्ण बात :

कर्म क्या है इस आध्याय मे आसनी से समझ सकते है। 

जीवन मे कुछ भी करते वे कर्म है कर्म का फल इसका अर्थ बहुत सी तरह- तरह की होती है इसलिए कहते है ना जैसा कर्म वैसा फल

लेखक हम से यह कहना चाहते है की कर्म योग मे हमे उसी काम से वास्ता होती है जिसका आर्थ है। काम से और कुछ नही इस लिए काम को ही कर्म है। मनुष्य का ध्येय सुख नही ज्ञान होना चाहिए और जो मनुष्य यह समझता है की ध्येय सुख है। वे केवल भूल कर ता है और कुछ नही। सुख और दुख केवल एक शिक्षक का तरह है जिससे हमे केवल ज्ञान लेना चाहिए ना की सुख मे आनंद और दुख मे परेशानी (घबराना) चाहिए

सुख और दुख जब आत्मा से होकर गुजरती तब बह हम पर आपना छाया छोरती है। जो हमारी चरित्र बनता है। और चरित्र ही बताता है कि मनुष्य कैसा है उसकाकर्म क्या है इस आध्याय मे आसनी से समझ सकते है। 

जीवन मे कुछ भी करते वे कर्म है कर्म का फल इसका अर्थ बहुत सी तरह- तरह की होती है इसलिए कहते है ना जैसा कर्म वैसा फल

लेखक हम से यह कहना चाहते है की कर्म योग मे हमे उसी काम से वास्ता होती है जिसका आर्थ है। काम से और कुछ नही इस लिए काम को ही कर्म है। मनुष्य का ध्येय सुख नही ज्ञान होना चाहिए और जो मनुष्य यह समझता है की ध्येय सुख है। वे केवल भूल कर ता है और कुछ नही। सुख और दुख केवल एक शिक्षक का तरह है जिससे हमे केवल ज्ञान लेना चाहिए ना की सुख मे आनंद और दुख मे परेशानी (घबराना) चाहिए

सुख और दुख जब आत्मा से होकर गुजरती तब बह हम पर आपना छाया छोरती है। जो हमारी चरित्र बनता है। और चरित्र ही बताता है कि मनुष्य कैसा है उसका...................... 

एसी ही बहुत सी आच्छी बाते सिख सकते इस पुस्तक की सहायता से 

धन्यवाद आप इस लेख को पढ़ने के लिए अब आप इस पुस्तक को पढ़ कर बहुत सा महत्वपूर्ण बाते सिखने के लिए। 

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